
चैनई में कोटड़ा के बच्चों की कहानी और हुनर की हुई प्रशंसा
उदयपुर ब्यूरो चीफ/ लिम्बाराम उटेर
वंदे भारत लाइव टीवी न्यूज़

हंसा कुमारी ने पिछले शैक्षणिक वर्ष में कोटड़ा के एक गाँव के सरकारी विद्यालय में कक्षा 1 में दाखिला लिया | जब शिक्षक मौखिक हिंदी में पाठ पढ़ा रहे थे तब वह कक्षा में ध्यान न देकर खिड़की से बाहर देख रही थी | लंच ब्रेक के दौरान हंसा ने अपनी दोस्त से कहा की “मारसाब हु भढ़ावें मई ठा न पढ़तो” जो की हंसा की स्थानीय समुदायिक भाषा है और जिसका मतलब हैं की मुझे समझ नहीं आ रहा कि शिक्षक क्या पढ़ा रहे हैं। हंसा कुमारी जैसे बच्चे सरकारी विद्यालयों में प्रवेश लेने से पहले एक (स्थानीय) भाषा बोलना और समझना सीख चुके होते हैं जो उन भाषाओं (हिंदी, अंग्रेजी) से बिल्कुल अलग है जिन्हें वह विद्यालय में समझ कर पढ़ना और लिखना सीख रहे हैं | विद्यालय में शुरुआती कक्षाओं में सीधे इन दोनों भाषाओं से पढ़ाना शुरु करने का परिणाम इस रूप में दिखता है कि बच्चे बिना समझे भाषा पढ़ना और लिखना सीख जाते हैं | राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में विद्यालय में कक्षा 5 तक स्थानीय भाषा का उपयोग करके बच्चों को सीखाने की बात कही है | हंसा के शिक्षक डुंगरपुर जिले से है जिन्हें कोटड़ा की स्थानीय भाषा नहीं आती और ऐसे में उनका (और उनके जैसे अन्य शिक्षकों का) बच्चों को प्राथमिक कक्षाओं में स्थानीय भाषा का उपयोग करके पढ़ाना मुमकिन नहीं है | ऐसे में स्थिति दोनों बच्चों और शिक्षकों के अनुकूल है | उजाला फाउंडेशन ने संदर्भगत, द्वी भाषा कहानियों और शिक्षक सहायक संसाधन सामग्री के माध्यम से इन चुनौतीयों को हल करना का प्रयास किया है | फाउंडेशन की मेवा कुमारी ने बताया की संदर्भगत, द्वी भाषा कहानियों ऐसी कहानियाँ है जो दोनों भाषाओं यानी बच्चों के द्वारा बोली गई स्थानीय भाषा और हिंदी में लिखी गई है | यह कहानियाँ कोटड़ा के लोगों के जीवन के अनुभवों से ली गई हैं और बच्चे तुरंत इनसे जुड़ जाते हैं। सबसे अहम बात हैं की बच्चे खुद के अनुभव जैसी कहानीयां पढ़ कर खुश होते हैं और आपस में एक दूसरे के साथ साझा करते हैं की ऐसा मेरे/मेरे आसपास के लोगों के साथ भी हुआ है | फाउंडेशन के प्रथा राम ने बताया की शिक्षक सहायक संसाधन सामग्री में हमने ऐसे संसाधन तैयार किए है जिसमें बच्चों के घर में, उनके घर के बाहर, और समुदाय में पाने वाली चीजों के नाम स्थानीय भाषा, हिंदी, और अंग्रेजी में लिखे हुए हैं | जैसे की उदाहरण, साडा (हाथों से पत्थर से बना एक छोटा कटोरा जिसमें मुर्गी, चूज़े, आदि पानी पीते हैं), पोरहू (मुर्गी पालन के काम में लिया जाता है जिसमें मुर्गे ,मुर्गियां, चूज़े पाले जाते है), हुल्ला (खेतों में गोबर डालने के काम आते है), आदि | इससे शिक्षकों को, बच्चों की स्थानीय भाषा की मदद से हिंदी और अंग्रेजी पढ़ाने में मदद मिलती हैं | फाउंडेशन के खेताराम ने बताया की राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 और राष्ट्रीय पाठ्यचर्या रूपरेखा 2023 में भी शिक्षार्थी (साथ ही शिक्षक) केंद्रित, समावेशी और प्रासंगिक सामग्री से सीखाने की बात की गई हैं जिससे इन सामग्री से समझना और उपयोग करना आसान हो जाता है | यह ध्यान में रखते हुए हम विद्यालय में बच्चों के साथ खजूर के पत्तों (जो की भारी मात्रा में यहाँ पर उपलब्ध है) से अलग अलग चीज़ें जैसे की वाल केस, चिड़िया, झाड़ू, आदि बनवाने का अभ्यास करवाते हैं जिससे उनके साक्षरता व संख्यात्मक कौशल के साथ हैण्ड मोटर कौशल पर भी काम होता है | फाउंडेशन के नाना लाल ने बताया की चैनई में मधी फाउंडेशन, मद्रास इंस्टिटूट ऑफ देवेलोपमेंट स्टडीज, और सेंटर फॉर एवेक्टिव गवर्ननंस आफ इंडियन स्टेट्स द्वारा आयोजित कल्वी कुरल कार्यक्रम में हमारे इसी अनुभव और प्रयास को साझा करने के लिए आमंत्रित किया गया जिससे पूरे भारत के विभिन्न राज्यों से आए हुए लोगों ने इन नवाचारों की और कोटड़ा के बच्चों की कहानी व हुनर की प्रशंसा की | साथ में बच्चों द्वारा खजूर के पत्तों से बनाए गए चिड़िया लोगों को भेंट की गई | 2020 से धरातल में कार्य शुरू करने वाले हमारे लिए यह बहुत ही गर्व की बात है | शुरुआत से हमें कोटड़ा आदिवासी संस्थान और मुंबई की माँ फाउंडेशन का संपूर्ण सहयोग रहा | इस कार्यक्रम में उजाला फाउंडेशन का प्रतिनिधव रवि ने किया |









